...

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कुछ कमी तो है

कुछ कमी तो है
जो मैं बेचैन रहता हूं

किस से पूछूं, कहां जाऊं
हरेक माथे पे पेसानी
हरेक पाओं में छालें है
फकत जिंदा है हर कोई
किसी उम्मीद को पाले

इतना आसान भी नहीं है
खुद को भी खुश कर पाना
जो गर मालूम हो जाता
कोई परेसा नहीं होता