...

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आखिर कबतक?
मिलती नहीं हर खुशी
कुछ पाने के बाद
खोना पड़ता है
बहुत कुछ
मिटाकर सारी याद।
मिलती नहीं शांति
सिशे के उस महल में,
उजरती नहीं जो बस्तियां
आंधी की इस पहल से ।
दुश्मन है जहां इंसान ही आज खुद का
सुनेगा कौन उन बेजुबानों के मन का
सुलझा ना सका जो शब्दों के सहारे
समझेगा क्या इशारे को वो हमारे
ना जाने कितने आंसू सच्चे हैं,
कितनी आंखे हैं सच में नम।
खबरों में लाकर ये क्या महान
बन जाएंगे।
कुछ हादसे बनकर किस्से कहानी आखिर
कबतक इन्हे सुनाएंगे ,
कब खुली हवा में एकबार हम
फिर सांस भर पाएंगे ?