...

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नीला समंदर
है वह नीला, आसमान से भी गहरा
खेलते हैं उसमें कइ जान
फिर वहती है लहु, शेष होता खेल
पुनः पनपता कई प्राण।

उसको रहती इंतजार, है वह ध्यान मग्न
कारण एक नई प्राण का आगमन,
पर जब होता आक्रमण, उस आगमन के पथ के उपर
तब भंग होता उसका कठोर ध्यान।

हृदय से उठता तब , जोरदार कंपित आर्तनाद
तब होता एक देवी मां का आविर्भाव
बन कर शक्त ढाल , करते पथ कि रक्षा
तब होता सुरक्षित उस आगमन पथ का।


यद्यपि वह करती सुरक्षा,बन ढाल उस पथ का
पर घट जाते कुछ आंकड़े
फिर भी करती है सुरक्षा, अपने स्नेह से लिपटे पल्लू में ढंक
करती है अपेक्षा उस अंतिम क्षणों का।

होता है पुनरावृत्ति, उस जीवन,मरण के खेल का
पुनः प्रयास होता बचाने कि , होता पुनरावृत्ति उस भुल का।



© harry56tuyul