...

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क्या होना था

सादा जीवन और उन्नी विचार को छोड़ दिया। प्रजा की प्राण-सम मानना भी छोड़ दिया। दिल को हिमालय करके बोलना सीख लिया। "आह" की आसरा बनाकर शाह बनना सीख लिया।।
अपने ही घर के तस्बर बनकर दुश्मन की लाठी बनते हैं।
मुँह में राम बगल में हुरा बनकर बी के दिये जलाते हैं।
সরা যথ হারি, সারি की, नकाब बनाकर नवाब बनते जाते हैं।
फिर भी, युग-कर्ता का नाम रटकर बोलने में कभी नहीं थकते हैं। ।
प्रान्तीय बंधन की देश-कल्याण का बंदनवार मानते हैं। मधुपान, ताश तथा अधर चुंबन को ही चरमाशय मानते हैं।
आत्मा की अधिकार की क्रीत-दासी बनाने संदेह न करते हैं।
अपने को हम देश-भल, बापू भक कहते हिचकते नहीं हैं?
चालीस साल हुए हमारे आजाद हुए। अपनी संस्कृति के पोषक न हुए
अपनी जबान को जब्त करते गये।
भाई। क्या होना था, हम, क्या हो गये ?
© Kushi2212