...

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पन्नों की देह पर...
पन्नों की देह पर मोती से
शब्दों को आराम दूँ!
मौन की अभिव्यंजनाओं को
थोड़ा विराम दूँ!!

लहरों संग चाँद की ये
कुंवारी प्रीत लिख दूँ!
विरह वेदना है नभ-वसुंधरा की रीत,
लिख दूँ!!

बेमौसम का प्रेम लिखूँ प्रिय,
तुझे लिखूँ फाल्गुन!
ढ़ाई आखर प्रेम ने,
न देखे कभी,गुण-अवगुण!!

भाव मुखर हो जाएं,
पीड़ तेरी, मेरी हो जाए!
शब्दों से उतरें ब्रह्मा-विष्णु,
नील(लेखनी) गहरी हो जाए!!

शाक्य का योग लिखूँ इसे
कि भोगी का भोग लिखूँ!
अंतस्तल-गहन-गुफाओं का
सुन तुझे मैं रोग लिखूँ !!

कोरी देह सज जाए
मसि के इन स्वप्निल रंगो से!
आज ईश् वंदन,
मनुज-अभिनंदन लिखूँ पन्नों पे!!

पन्नों की देह पर यूँतो
छलनी होते हैं शुभ्र भाव भी!
पन्नों की देहपे लिख दूँ,
पडे़ न वर्ण अभाव कभी!!