...

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वो थपकी.......
मेरी आज की उपलब्धियों को,
जब कल से मैं जोड़ता हूँ
कभी हँसता हूँ, कभी रोता हूँ
कभी यूँ ही नाज़ खुद पर करता हूँ
तो कभी अपनी अटपटी हरकतों को
बेतुकी बातों को
याद कर मैं खुद पर ही हँसता हूँ
सच में , मैं बिल्कुल बुद्धू था
सोच मुस्कुराता हूँ ।।

तब कैसा था , और अब कैसा हूँ
सोच याद उन बीते पलों को करता हूँ,
जब किसी की मीठी बातों ने
अकारण ही मिली थपकियों ने
मुझ पर दिखाए विश्वास ने
मुझे आगे बढ़ने के लिए था प्रेरित किया
मैं भी कुछ कर सकता हूँ
इस सोच को था , मुझ में जन्म दिया ।

गिरता तो मैं आज भी कई बार हूँ
अपनी गलतियों से
विपत्तियों में घिरता भी कई बार हूँ
पर याद आती है
दसवीं के गणित शिक्षक की थपकी
पापा से कही उनकी बातों की पंक्ति
जिसने उस पल था मुझे हैरान किया
पर उनके दिखाए विश्वास को
सार्थक करने के लिए,
मुझमें बदलाव भी किया
पर बात समझ में आज भी नहीं आती है
कि कैसे ,
जहाँ पापा को मेरे पास होने की भी टेंशन थी
पर उन्हें मेरे अवल आने की अनुभूति थी
कि सिर पर हाथ फेर वो बोले-
" अरे ये , परेशान मत होइए
ना ट्यूशन चाहिए इसे ,
ना किसी तरह की फटकार
ये तो अवल नंबर से पास होंगे
आप इत्मीनान से करे मुझ पर विश्वास " ।

बस उस वक़्त से ,
गणित से मेरी दोस्ती हो गई
ना कहा कभी सर से मैंने
पर मेरे मार्गदर्शन में दीपक सी रोशनी
उनकी बातें बन गई
जो आज भी अविश्वास के धुएं को
परे करने में मदद करती हूँ
मैं कर सकता हूँ कहकर
मुझे फिर से खड़े होने के लिए
प्रेरित करती हैं ।

विश्वास की थपकियों में ,
हाथों की नर्मी में
चेतना भी है , आगे बढ़ने की शक्ति भी है
तो डांट सी सख्ती भी है
बस संतुलन में मिले
तो अमृत सा काम करती है
आत्मविश्वास की लहर बन दौड़ती है
पर अति में ये ,
अभिमान में मान से भी लड़ बैठती है,
बहुमूल्य को भी शून्य बना
घातक बन जाती है ।।

© nehaa