...

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साथ-हाथ
जब किसी का हाथ छुटा,जब किसी का साथ छुटा।
हर कदम पर आयी थी मुश्किले,हर मोड़ पर थी दुविधा।
छूटते हाथों को न रोक पाना,छूटते साथ को न जोड़ पाना।
उन हाथों को मजबूती न दे पाना,
साथ निभाने मे असहज हो जाना।
कुछ बाते जीवन को प्रभावित करती है,
और वही हमे मजबूत बनाती है।
छुटे हाथ का साथ फिर पा जाना,
बिछड़ा साथ फिर से मिल जाना।
कितना सुख देता है मन को,नवजीवन देता इस तन को।
जब किसी का हाथ छुटा,जब किसी का साथ छुटा।
हर कदम पर आयी थी मुश्किले,हर मोड़ पर थी दुविधा।
संजीव बल्लाल १९/५/२०२३
© BALLAL S