कैसे शहर में आ गया मैं
बड़ी भीड़ है,
सजीले भड़कीले लिबासों की,
जो पुतलों पे टाँगें फिरते हैं,
अजीब होड़ है
रंगीन मुखोंटों की
हर चेहरे पे चिपके मिलते है,
बढ़ी तल्ख़ी है मिजाज़ में,
अना सराबोर ख़्याल हैं,
कसमकश की रीति हैं,
शख़सियत का मरोड़ है,
कैसे शहर में आ गया मैं,
ये कैसी अजीब दौड़ है।....
दिन सोया है,
रातों को बड़ा शोर हैं,
कहीं जबरदस्ती के सपनें हैं
कहीं वस्ल पुरज़ोर हैं,
खूबसूरत...
सजीले भड़कीले लिबासों की,
जो पुतलों पे टाँगें फिरते हैं,
अजीब होड़ है
रंगीन मुखोंटों की
हर चेहरे पे चिपके मिलते है,
बढ़ी तल्ख़ी है मिजाज़ में,
अना सराबोर ख़्याल हैं,
कसमकश की रीति हैं,
शख़सियत का मरोड़ है,
कैसे शहर में आ गया मैं,
ये कैसी अजीब दौड़ है।....
दिन सोया है,
रातों को बड़ा शोर हैं,
कहीं जबरदस्ती के सपनें हैं
कहीं वस्ल पुरज़ोर हैं,
खूबसूरत...