...

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एक खत
वो छुप छुप कर चोरी चोरी इंतजार हमेशा करती है
आशियाने में रहकर तैयार वो खुद को करती है
आश बांधे खड़ी गलियारे में चांद को एक नज़र ही निहारे
आसमान से जब टूटे तारा वो प्रेम भरे खत लिखती है

नजरों में उसने रखकर सारे सपने सजोए है
विरह की आग्नि में जल कर कपड़े अपने भिगोए है
मन चंचल तन खिलता उसका सुंदर यौवन ढिढूर गया
सहम गया जब दिल उसका तब प्रेम भरे खत लिखती है

न बोले ये चूड़ी कंगन अब पैरो में पैजन न बोले
न बोले ये छुमका अब काजल भी सुंदर न बोले
लगने लगा श्रृंगार ये फीका बालम मेरा अब तेरे बिन
जब तड़प उठा बालो का गजरा तब प्रेम भरे खत लिखती है

© Ankaj Rajbhar