...

4 views

ज़िन्दगी
ऐ ज़िन्दगी इस तरह तो जीने का इरादा नहीं था,
उड़ा दिया फिज़ा में जो वजूद का बुरादा नहीं था

साए ने भी अब साथ छोड़ दिया हो जैसे मेरा,
साथ निभाने का भी ऐसा कोई वादा नहीं था,

जिसने महल बना दिए हो दर्द की ईंटे लगाकर,
झांकने के लिए वहां कोई मीनार आधा नहीं था,

जीती हुई बाज़ी भी हार दी हो मैंने जैसे आख़िर,
वज़ीर बन कर खेले वजूद मेरा प्यादा नहीं था,

ज़िम्मेदारियों ने गुम कर दी है शरारतें मेरी "नूर",
हक़ हमारा मुस्कुराहट पर कुछ ज़्यादा नहीं था!!!



© Noor_313