...

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चले जाना ही: उत्तर
अच्छा लगा जान कर।
हमें देखतें रहें।
काबिल हर उस मौज के समझते रहें।
क्युकी,ये लिखा था या खुद भागी बने।
अपने अकेलेपन के राही थे,
इस राह में खुद गुम हो बैठे।
रातें भी पहले थोड़ी नम हो जाती थी।
गम की आँखों से हर तस्वीर धुँध में गड जाती थी।
अब थोड़ा रुखा सा है हर एक रुख रात का।
पर हाँ,पहले से अब ज्यादा अच्छा है।
हाँ,कुछ अपने से प्यार सा है।
शायद,पहले भी था पर कहीं खो गया था।
कुछ पाना था।
हाँ,उतरे थे मंजर में सोच कि देखेंगे,
क्या,अभी भी कर सकते दोस्ती?
जहाँ सब सजा रहे थे प्यार की महफिल।
कुछ हुआ या मिला भी नहीं होगा,
बिन मतलब की होती है क्या अभी भी यहां यारियाँ।
पाया,हाँ बहुत प्यारा सा अह्सास था।
वो हुआ एक अनजाने में।
आने पर तो उत्तर पाया ही,
पर चले जाने से भी उनके कुछ उन्होने पूर्ण कराया भी।
खुद से वहीं प्रेम वापस मिलाया।
हमेशा चले जाने का सफर कई बार हुआ,
जाना,सब आज भी बनते रिश्तो को तोडने की हिम्मत रखते हैं।
मान जाती थी बात ।कई बार बुरा भी लगा।
क्यूँ,कैसे हो पाता उनसे ये।मलाल नहीं होता क्या?
क्या हैं उनके पास प्यार से बेहतर कोई ओर कड़ी
खुश रहनें की?
पर इस बार मन ने खुद को कोसा नहीं।
कुछ अनजाने में उसने अपने आप को छोडा नहीं।
पा लिया आज उत्तर हर उन सवाल का,
जिनके पास जाने का कारन नहीं मिलता था।
आज हर डर छुटा।हर बात पर खुशी मिलती हैं।
पहले से ही जो हमारी ताकत थी,
उसे रखने का कारन जो मिला हैं।
कभी कभी खुद से लड़ना अच्छा होता हैं।
पाने की चाह कुछ मिल जाने की राह की ओर मोडती हैं।
कभी-कभी चले जाना उनका अच्छा होता है।
अजीब होती हैं रात,
हाँ,बात वही पर कुछ अलग इनका मिजाज रह्ता हैं।
अब नमी आँखों की सवाल करना छोड कारन में बह्ती हैं।
सूखे आँसूं अब निर बहते हैं।
रोक कर खुद को अब समझाती नहीं अपने आप को,
बस अच्छा लगता है अब हर पल अपना।
क्युकी अपना बना लिया है उन सभी से।



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