...

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निर्देशों के बिना मानचित्र
चला मैं सफर पर बिना नक्शे के,
न कोई दिशा, न कोई बंधन,
हवा ने चुपके से कानों में कहा,
“तू ही है अपनी मंज़िल का स्पंदन।”

रास्ते थे धुंधले, पर दिल था साफ,
पेड़ों की सरसराहट ने दी आवाज़,
पलकों के नीचे छिपे सवालों ने,
खुद ही दे दिए अपने सारे जवाब।

नदियों के किनारे कदमों ने गाया,
राहें चाहे अनजानी हों,
मंजिल तो वहीं मिलती है,
जहां सपनों की कहानी हो।

कभी ठहरा मैं आसमान के नीचे,
सितारों से पूछी कोई नई राह,
पर वो बोले, "मत देख बाहर,
तेरा पथ तुझमें ही है बसा।"

हर मोड़ पर बस दिल को पढ़ा,
हर अंधेरे में रोशनी खुद से निकाली,
निर्देशों की दुनिया पीछे छोड़ दी,
जब अंतर्दृष्टि ने मंज़िल संभाली।

अब तक सफर चल रहा है यूं ही,
न कोई डर, न कोई थकान,
क्योंकि नक्शे के बिना भी जीवन में,
दिल ही बन गया मेरा संविधान।

#निर्देशोंविनानकशो
© rajib1603