...

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कहा से आया हूँ मै
कह से मै आया हूँ और जा कहा रहा हूँ
मन विवादों के घेरे मे हैँ और मै जीवन सागर के इस किनारे पर खड़ा हूँ
अस्तित्व की धारा से मै कैसे बिछड़ गया इसी सोच मे डूबा हूँ ..... इसके बावज़ूड मै जिया कैसे और अब क्यों मै मरने की सोच रहा हूँ
ये कैसा अनलिखा अनुबंध कि आज तक
इसे ही अंतिम सत्य समझता आ रहा हूँ
एक ज़माना गुज़रगया और मुझे मेरी खबर नहीं कि मै क्यों जी रहा हूँ
जो सुख जीवन को मिले हैँ सब सिमट गए हैँ
जबकि जो दुख जो दर्द मिले वे न जाने क्यों पुरे जीवन पर छा कर पसर गए हैँ