अबला
कोई मोल नहीं यहां
तेरे बहते इन अश्कों का
फिर क्यूं तू व्यर्थ ही है नीर बहाती
अश्रुओं की धारा बहा
आखिर किसको है अपना पीड़ सुनाती
स्वयं ही लड़नी होती है यहां हर लड़ाई
तूने फिर क्यूं है दुनियां से आस...
तेरे बहते इन अश्कों का
फिर क्यूं तू व्यर्थ ही है नीर बहाती
अश्रुओं की धारा बहा
आखिर किसको है अपना पीड़ सुनाती
स्वयं ही लड़नी होती है यहां हर लड़ाई
तूने फिर क्यूं है दुनियां से आस...