...

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अच्छा था...।।

मुझे तन्हा करने से पहले अपना बना लेते तो अच्छा था ।
दूर जाने से पहले मुझे बाँहों मे समेट लेते तो अच्छा था ।।

सुनो तो सही सफ़र पर जा रहे हो क्या यूँ छोड़कर हमें ।
दो पल हमें भी अपना हमराही बना लेते तो अच्छा था ।।

ना ज़ब्त कर दर्द-ए-अश्कों को अपनी इन बेनूर आँखों में ।
ये ग़म-ए-आब फिर ज़रर देगा बरसा लेते तो अच्छा था ।।

यूँ कब्रों पर जाकर सुबहो-शाम दीये जलाने से क्या फायदा ।
माँ-बाप के पैरों मे ही जन्नत पहले बना लेते तो अच्छा था ।।

तेरी बहुत सी शिकायतें हैं 'अल्फाज़' तुझसे इस जमाने को ।
काश तुम भी दर्द को अपना हमनवां बना लेते तो अच्छा था ।।
#ज़िन्दगानी_मे_कुछ_यूँ_भी

**ज़ब्त--सहन,सहनशीलता
**ज़रर--नुकसान
**हमनवां--दोस्त
**ग़म-ए-आब--दुःखों के बादल

©AK_Alfaaz.

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