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अनलॉक
चलो फिर शहरों की मशगूल ज़िन्दगी मैं खो जाये हम,
भाई ने दिल्ली में लगे तालो को, खोलने का एलान किया है।
फुरसत से निपटने के बाद, अपने बाज़ुओ को भी कस लो दोस्तों,
दफ्तरों के रुके कामों को भी, चलो जाकर के देख लिया जाये।
ख़ामोशी से कोसो दूर, फिर शहरों की बे-उसूली में खो जाये हम,
फिर वही शोर-ओ -गुल, दौड़ती ज़िन्दगी, आलूदगी में समां जाएं हम ।
चलो कुछ लोग मिलकर, अपने ईबादत खानों में जाकर हाल जान ले,
मस्जिद की अज़ान, मंदिरों की घंटी और घंटे चर्च के बजा आएं हम।
कहर फिर ये किसी दुश्मन पे भी न बरसे, दुआ करता है "रवि",
इल्तिज़ा सब से है, अब तो उस परवर्दिगार की हुज़ूरी में आ जायें।
राकेश जैकब "रवि"
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