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किसान की मजबूरी

© Nand Gopal Agnihotri
किसान की मजबूरी
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मुझको कोई गिला न शिकवा, जग या ऊपरवाले से ।
मैं मजबूर किसान श्रमिक, लड़ता हूँ अपनी किस्मत से ।।
मैं खुद अपना भाग्यविधाता, जलूं क्यों किस्मत वालों से ।
मैं मजबूर किसान श्रमिक, लड़ता हूँ अपना किस्मत से ।।
श्रद्धा से करता कर्म, अंत फिर मिट्टी में मिल जाता हूँ ।
सूखा गीला ताप सभी, प्रकृति के कोप झेलता हूँ ।।
मेरे घर पर फूस नहीं, पर उनके महल बनाता हूँ ।
मैं खाऊँ या भूखे सोऊँ, लेकिन अन्न उपजता हूँ ।।
अधिकार नहीं जन्म पर कोई, महल मिलेगा या खण्डहर ।
पता नहीं किस्मत का लिखा, गोद मिलेगी या ठोकर ।।
इसी जन्म के कर्म जीव को, पहुँचाते उस कोख में ।
जीवन आभावों में बीते, या राजसी परिवेश में ।।
क्या जलना किस्मत वालों से, लड़ना अपनी किस्मत से ।
मैं खुद अपना भाग्यविधाता, जलूं क्यों किस्मत वालों से ।।
अंत में -
दुनिया में हम आए हैं तो, जीना ही पड़ेगा ।
जीवन है अगर जहर तो, पीना ही पड़ेगा ।।
स्वरचित - नन्द गोपाल अग्निहोत्री