...

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बेखब्रियां
हमारी बेखबरियां हमरी बेखब्रो से,
जब जब बेखबर हो गए,
हमारी बेखब्री हमसे ही,
तब तब बेखबर रह गए,
बेखब्रों की ये सिलसिला ,
कहां पे होगी खतम,
खत्म होगी कब ये दर्द ,
और ये दिल की सितम,
बेखबर रहते वो लम्हे,
वक्त में ठहर ते ख्वाब,
हो चाहे हजारों गम इसमें,
है तो ये पल नायाब,
गुजर ते पल के साथ,
बेखबरियां हम अपनाने लगे,
देर सबेर सबर ता ही हैं,
रिस्तो की हर मुस्किल धागे,।