...

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कि मैं खुद की खोज में चला..
मैं खुद की खोज में चला, अथाह समुद्र प्रवाह में
मिले कई राही मुझे, इस सफर की नाव में

कोई था कि डूबता, कोई दलदल में फंसा
चांद की हां रोशनी में, अपनों की बस याद थी

कोई सिमट के रह गया, कोई आगे बढ़ गया
सजे हुए महल मिले, बड़े अजीब लोग थे

अंदर से खिन्न थे, पर दिखावट की जिंदगी में मस्त वो दिख रहे
लहरों की मार से, बड़े-बड़े झुलस गए

कोई अपनों को ढूंढता, कोई जिंदगी की तलाश में
कई हारे बैठे मिले, पंछी थे आसमा की खोज में

_अनुज
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