देख आईने को रूबरू...।।
देख आईने को रूबरू मैं, संवर सा जाता हूं।
मिलता ख़ुद ही खुद से मैं, खिल सा जाता हूं।
देख आईने को रूबरू...।।
दो कश्ती में चल ही रही होती है जिंदगी,
के मिलके खुद से, मैं आसान हर सवाल पाता हूं।
देख आईने को रूबरू...।।
आता है सवाल ये भी कितने दरमियां जेहन में,
अपने अक्ष में जेसे कभी बस छल ही पाता हूं।
देख आईने को रूबरू...।।
करके बंद आंखे, खोली फिर से जिस ही क्षण मेने।
मिला ख़ुद से एक दफा फिर, हुए दूर वो तन्हा थे जो बस सपने।।
देख आईने को रूबरू...।।
Riya "Mikki"
© Riya "Mikki" writes
मिलता ख़ुद ही खुद से मैं, खिल सा जाता हूं।
देख आईने को रूबरू...।।
दो कश्ती में चल ही रही होती है जिंदगी,
के मिलके खुद से, मैं आसान हर सवाल पाता हूं।
देख आईने को रूबरू...।।
आता है सवाल ये भी कितने दरमियां जेहन में,
अपने अक्ष में जेसे कभी बस छल ही पाता हूं।
देख आईने को रूबरू...।।
करके बंद आंखे, खोली फिर से जिस ही क्षण मेने।
मिला ख़ुद से एक दफा फिर, हुए दूर वो तन्हा थे जो बस सपने।।
देख आईने को रूबरू...।।
Riya "Mikki"
© Riya "Mikki" writes