...

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अस्थिर मन
ए मन तु क्या चाहता
क्यों उसके लिए बेकरार रहता
जो चाहता नही जीवन में अपने
क्यों उसी से हद से ज्यादा प्यार करता
ए मन तु क्या चाहता

हर सपना सुंदर होता
करना उसे साकार चाहता
पर सपना सपना ही होता
जीवित जहां में उसका मोल न होता
ए मन तु क्या चाहता

कातिलाना हर शहर है
किस किस को अपना बनाना चाहता
कोई एक भाए जब तुझको
तु तो हर एक को पसन्द करना चाहता
ए मन तु क्या चाहता

बिखरी जुल्फें निगाहें खामोश
हर अदा जिसकी बरपाता कहर
ताज़्जुब है जो टीक सके एक पे
जब कार्य तेरा है ही अस्थिरता
ए मन तु क्या चाहता