Meri Nani
इस छल, कपट, राग, बैर, द्वेष, अहंकार, आकांक्षाओ एवं उम्मीदो से घनघोर रूप से "वशीभूत" संसार में आपका रिश्ता उन चुनिंदे रिश्तो में से है जहाँ मुझे अपार, निश्छल प्रेम, आशीष एवं संतुष्ठी प्राप्त हुआ नानी माँ। आपका सान्निध्य और आशीर्वाद ऐसा रहा जिसने मुझे अमिश्रण एवं निरंजनता का अहसास कराया। एक ऐसा रिश्ता जो निरर्थक उम्मीदो, आकांक्षाओ और कर्मो के बंधनो से मुक्त हो। जो बंधन नही अपितु आजादी का अहसास कराए। जहाँ मुझे समाज के एक पहले से निर्धारित ढ़कोसलेपन भरे व्यवहार में घुटित एक पिंजरे में कैद पंक्षी समान जीवन ना जीना पड़े ना ही कुछ "निभाना" पड़े।
"निभाने" वाले रिश्ते मुखौटेदार एवं कष्टदायक होते है जहाँ लोग जीवन नही जीते, बस जिम्मेदारीयों एवं व्यावहारिकता का "प्रदर्शित" वहन करते है ताकि खुद के आत्म - सम्मान को अहंकार का स्वरूप प्रदान कर सके।
आज के समाज में लोग बिना किसी "निश्छल" कर्म या सहायता के ही यश व गुणगान कि कामना करते है। बल्कि कई ऐसे होते है जो या तो दुसरो के सत्कर्मो का यश व फल खुद मुँह-मियाँ मिठ्ठू बन निर्लज्जतापूर्वक ग्रहण करते है या फिर ऐसे कृतघ्न होते है जो सहायक सत् चित धीर व्यक्ति व संबंधी के प्रति सम्मान व आदर भाव रखने कि जगह लालच और आकांक्षाओ से ग्रस्त सिर्फ और ज्यादा लालच, आवश्यकताएं व मनोकामनाऐ पूर्ति हेतु सहायक की बस सहायता हेतु प्रयोग कि मंशा रखते है।
आप इन सब से परे थी नानी माँ। आप निश्छल, शुद्ध एवं अलौकिक थी। मैने आपको सदैव संपूर्ण समाज के प्रत्येक व्यक्ति व जीवजंतु लिए एक रूपता व एक समान प्रेम भाव रखते ही देखा। आपको हमेशा मैने सकारात्मकता से परिपूर्ण, ऊर्जावान व धर्म का निर्वाहन करते पाया। आपका प्रेम व ज्ञान मेरे लिए शुद्धता का प्रतिक है। स्कूली रूप से निरक्षर रहते हुए भी आपका नैतिक व व्यावहारिक ज्ञान आपके चारित्रिक महानता को दर्शाता था नानी माँ। आपके धार्मिक ग्रंथो का असीम ज्ञान और जो पौराणिक कथाओ का दिलचस्पी भरा व्याख्यान आप सदा मुझे गोद में सुलाकर किया करती थी वह आपकी अद्भुत दिव्यता को दर्शाता था। आज मेरे ह्रदय में वास अंतस एवं अध्यात्म से अवगत होने कि लालसा आपके ही कहानियों व शिक्षाओ कि देन है।
आपसे जुड़ी सारी यादें आज भी मेरे अंतर्मन में तरोताजा हैं।
आपने भारत कि आजादी कि लड़ाई अपने बालावस्था में नजदीक से देखी थी। शायद इसी कारण आपको आजादी और स्वतंत्रता सेनानीयो के शहादत कि अहमियत का अहसास था। तभी आप शायद हर स्वतंत्रता एवं गणतंत्र दिवस पर कभी मुझसे तो कभी किसी अन्य बच्चे से झंडा फहरवाया करती थी और समस्त परिवार में जलेबी, समोसे, कचौरीयाँ बँटवाती थी। आपने अपना जीवन एक सेनानी जैसा ही व्यतीत किया। जीवन कि कठिनाइयों, विकट परिस्थितियों व चुनौतीयों का दृढ़तापूर्वक सामना करते हुए। पग-पग पर कठिन निर्णय लेते हुए व समाज या रिश्तेदारो के विरूद्ध रहकर जो आपको उचित लगा वो करते हुए । ताकि आप खुद को एवं अपने बच्चो व अपने आस - पास रहने वालो को एक शांत - सुखी - समृद्ध जीवन प्रदान कर सके, साथ ही जरूरतमंदो कि सहायता भी कर सके। आपने सदैव निश्वार्थ एवं निश्छल भाव से खुद कि विकट परिस्थितियों में भी दुसरों कि सेवा - सहायता की। पर शायद इन्ही कठिन निर्णयों में कुछ एक-आध गलत रह गये या जिनके सहायता के लिए निर्णय लिए गए वह कृतज्ञता का उचित व्यावहारिक अर्थ नहीं जान - समझ पाए और आपकी मृत्यु भी शायद एक सेनानी के प्रकार ही हुई ।
समाजिक सरोकारो से परे आपसे और आपके जीवनकथा से मुझे सही सोच विकसित करने की राह, सही-गलत व्यवहार, छली-कपटी संसार में लोगो के मन, विचार और व्यवहार का निरीक्षण कर सच्चे - झुठे रिश्तो और लोगो को भांपने का ज्ञान प्राप्त हुआ। साथ ही सदैव अपनी संस्कृति और धर्म मार्ग से जुड़े रहने कि प्रेरणा भी प्राप्त हुई और यह बोध हुआ कि माता - पिता को किस प्रकार का जीवन देना और किस प्रकार का "नही देना" है ।
इन सभी कारणों से मैं आपका सदैव अति कृतज्ञ हूँ एवं आप, आपका जीवन और आपकी शिक्षाए सदैव मेरे मन-मस्तिष्क व ह्रदय में वास करती है। आप आज भी माँ और मेरे ह्रदय में ससम्मान प्रेमपूर्वक वास करती है।
आज आपकी छठी पुण्यतिथि पर आपको शत् शत् नमन एवं श्रद्धांजलि अर्पित है नानी माँ।
© thestubbornbeast_10
"निभाने" वाले रिश्ते मुखौटेदार एवं कष्टदायक होते है जहाँ लोग जीवन नही जीते, बस जिम्मेदारीयों एवं व्यावहारिकता का "प्रदर्शित" वहन करते है ताकि खुद के आत्म - सम्मान को अहंकार का स्वरूप प्रदान कर सके।
आज के समाज में लोग बिना किसी "निश्छल" कर्म या सहायता के ही यश व गुणगान कि कामना करते है। बल्कि कई ऐसे होते है जो या तो दुसरो के सत्कर्मो का यश व फल खुद मुँह-मियाँ मिठ्ठू बन निर्लज्जतापूर्वक ग्रहण करते है या फिर ऐसे कृतघ्न होते है जो सहायक सत् चित धीर व्यक्ति व संबंधी के प्रति सम्मान व आदर भाव रखने कि जगह लालच और आकांक्षाओ से ग्रस्त सिर्फ और ज्यादा लालच, आवश्यकताएं व मनोकामनाऐ पूर्ति हेतु सहायक की बस सहायता हेतु प्रयोग कि मंशा रखते है।
आप इन सब से परे थी नानी माँ। आप निश्छल, शुद्ध एवं अलौकिक थी। मैने आपको सदैव संपूर्ण समाज के प्रत्येक व्यक्ति व जीवजंतु लिए एक रूपता व एक समान प्रेम भाव रखते ही देखा। आपको हमेशा मैने सकारात्मकता से परिपूर्ण, ऊर्जावान व धर्म का निर्वाहन करते पाया। आपका प्रेम व ज्ञान मेरे लिए शुद्धता का प्रतिक है। स्कूली रूप से निरक्षर रहते हुए भी आपका नैतिक व व्यावहारिक ज्ञान आपके चारित्रिक महानता को दर्शाता था नानी माँ। आपके धार्मिक ग्रंथो का असीम ज्ञान और जो पौराणिक कथाओ का दिलचस्पी भरा व्याख्यान आप सदा मुझे गोद में सुलाकर किया करती थी वह आपकी अद्भुत दिव्यता को दर्शाता था। आज मेरे ह्रदय में वास अंतस एवं अध्यात्म से अवगत होने कि लालसा आपके ही कहानियों व शिक्षाओ कि देन है।
आपसे जुड़ी सारी यादें आज भी मेरे अंतर्मन में तरोताजा हैं।
आपने भारत कि आजादी कि लड़ाई अपने बालावस्था में नजदीक से देखी थी। शायद इसी कारण आपको आजादी और स्वतंत्रता सेनानीयो के शहादत कि अहमियत का अहसास था। तभी आप शायद हर स्वतंत्रता एवं गणतंत्र दिवस पर कभी मुझसे तो कभी किसी अन्य बच्चे से झंडा फहरवाया करती थी और समस्त परिवार में जलेबी, समोसे, कचौरीयाँ बँटवाती थी। आपने अपना जीवन एक सेनानी जैसा ही व्यतीत किया। जीवन कि कठिनाइयों, विकट परिस्थितियों व चुनौतीयों का दृढ़तापूर्वक सामना करते हुए। पग-पग पर कठिन निर्णय लेते हुए व समाज या रिश्तेदारो के विरूद्ध रहकर जो आपको उचित लगा वो करते हुए । ताकि आप खुद को एवं अपने बच्चो व अपने आस - पास रहने वालो को एक शांत - सुखी - समृद्ध जीवन प्रदान कर सके, साथ ही जरूरतमंदो कि सहायता भी कर सके। आपने सदैव निश्वार्थ एवं निश्छल भाव से खुद कि विकट परिस्थितियों में भी दुसरों कि सेवा - सहायता की। पर शायद इन्ही कठिन निर्णयों में कुछ एक-आध गलत रह गये या जिनके सहायता के लिए निर्णय लिए गए वह कृतज्ञता का उचित व्यावहारिक अर्थ नहीं जान - समझ पाए और आपकी मृत्यु भी शायद एक सेनानी के प्रकार ही हुई ।
समाजिक सरोकारो से परे आपसे और आपके जीवनकथा से मुझे सही सोच विकसित करने की राह, सही-गलत व्यवहार, छली-कपटी संसार में लोगो के मन, विचार और व्यवहार का निरीक्षण कर सच्चे - झुठे रिश्तो और लोगो को भांपने का ज्ञान प्राप्त हुआ। साथ ही सदैव अपनी संस्कृति और धर्म मार्ग से जुड़े रहने कि प्रेरणा भी प्राप्त हुई और यह बोध हुआ कि माता - पिता को किस प्रकार का जीवन देना और किस प्रकार का "नही देना" है ।
इन सभी कारणों से मैं आपका सदैव अति कृतज्ञ हूँ एवं आप, आपका जीवन और आपकी शिक्षाए सदैव मेरे मन-मस्तिष्क व ह्रदय में वास करती है। आप आज भी माँ और मेरे ह्रदय में ससम्मान प्रेमपूर्वक वास करती है।
आज आपकी छठी पुण्यतिथि पर आपको शत् शत् नमन एवं श्रद्धांजलि अर्पित है नानी माँ।
© thestubbornbeast_10