...

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तुम!
सुनो प्रिय,
तुमपे कोई मुक्तक लिखूँ,
या तुम्हें,
मृगशीर्ष का तारक लिखूँ,
प्रत्येक श्वास में,
जो जीवन भर देता,
उस उत्साह का ध्योतक लिखूँ,
मन पखेरू उड़ देता,
वो पंख क्रियात्मक लिखूँ,
अरे! मूढमति मैं,
जब मंथन में तू हो,
लेखिनी बस चल पड़ती,
ना पूछती मुझसे यह भी,
कि तुमपे कोई मुक्तक लिखूँ,
या तुम्हें मृगशीर्ष का तारक लिखूँ।
Jignaa
©jigna___