...

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सोचता हूं कह दूंगा
कैसे कहूं जज्बात अपने,
सोचता हूं कह दूंगा आज सारे,
तुझको देखता हूं तो
खुद का ख्याल नही रहता,
सोचता हूं रोज, आज शाम को,
तुम्हे चाय पर ले जाकर ,
दिल की बात करूंगा,
मगर हर रोज की तरह ,
पूरी शाम बीत जाती है,
तुझको देखते देखते।

तुम कहते हो क्यों इतना,
तुम मुझको देखते रहते हो,
मैं हर रोज की तरह तुम्हारे,
इस सवाल से हल्का सा मुस्कराते हुए,
तुमसे नजरे चुराने लगता हूं,
तुम बेखबर नही दिल से मेरे,
मैं भी ये खबर जनता हूं,
मगर सोचता हूं हर रोज,
आज तुमसे दिल की बात करूंगा,
तुमको तुमसे मांगने की बात करूंगा,

शाम होते ही अलग सी मुस्कान आ जाती है,
चेहरे पर मेरे, तुमसे मिलने को लेकर,
थोड़ा सा बालों को मैं भी,
संवार लिया करता हूं,
तुम इस बात पर हस रहे होगे मेरी,
मगर मैं भी तुमसे मिलने को ,
आइना देख लिया करता हूं,
रोज शाम होते ही ,चाय बनते ही,
तेरा इंतजार करने लगता हूं,
तुम्हारे साथ बैठ कर दो घूंट
पीने के अरमान लिए रहता हूं,

सोचता हूं तुमसे चाय के बहाने,
दिल के राज कहेंगे,
दिल के राज के बहाने,
तेरे जज्बात सुनेंगे,
तेरे जज्बात के बहाने,
तुझको देखा करेंगे,
सोचता हूं हर रोज,
तुमसे अपने दिल के जज्बात कहेंगे।।
सोचता हूं बेखबर हो तुम,
मगर कितना अनजान हूं मै ।



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