इश्क़ का दारिया
महबूब मिल जाए,
मगर मोहब्बत न मिले,
हाय ये दर्द,
जैसे बारिश हो, पर छांव न मिले,,
दिल के दरिया में उठे सैलाब,
पर किनारों से राहत न मिले।
सांसों में बस जाए कोई अपना,
मगर उसकी धड़कन की आहट न मिले,,
यह कैसी कसक, यह कैसी सजा,
मिलन हो मगर रूह को राहत न मिले,,
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और मिल जाए जो मोहब्बत,
तो महबूब का न मिलने का कोई गम नहीं,
रूह का...
मगर मोहब्बत न मिले,
हाय ये दर्द,
जैसे बारिश हो, पर छांव न मिले,,
दिल के दरिया में उठे सैलाब,
पर किनारों से राहत न मिले।
सांसों में बस जाए कोई अपना,
मगर उसकी धड़कन की आहट न मिले,,
यह कैसी कसक, यह कैसी सजा,
मिलन हो मगर रूह को राहत न मिले,,
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और मिल जाए जो मोहब्बत,
तो महबूब का न मिलने का कोई गम नहीं,
रूह का...