लौट जाना चाहता हूं
लौट जाना चाहता हूं…..अपने बचपन के सपनों में
जो सपने नहीं जिंदगी हुआ करते थे
जो ब्लैक एंड व्हाइट नहीं रंगीन हुआ करते थे |
लौट जाना चाहता हूं….. उन बचपन के मित्रों के पास
जो गरीब,अमीर नहीं सब अपने
हुआ करते थे |
हम अलग-अलग नहीं
सब एक साथ , खेला करते थे |
दिल में नफरत नहीं प्यार हुआ करता था |
लौट जाना चाहता हूं …..अपने बचपन के सपनो में
उन त्योहारों में जिनमें में पूरा परिवार एक साथ हुआ करता था |
और उन परिवारों में दो-तीन लोग नहीं
2-3 के पीछे बस जीरो लगे हुआ करते थे |
लौट जाना चाहता हूँ......अपने बचपन के सपनों में ||
लौट जाना चाहता हूं, अपने उस मोहल्ले में , जो एक साथ रहा करते थे
जो खुद में एक परिवार हुआ करते थे
यहाँ त्यौहार, त्यौहार हर रोज त्यौहार हुआ करते थे |
लौट जाना चाहता हूँ.....बचपन के सपो में
अपने उस स्कूल की छत के नीचे,जहाँ मित्रों की टांग खीचते |
कभी-कभी तो गुरू जी भी लपेटे में आते |
जब इंटरवल की घण्टी सुन सभी के टिफिन खुल जाते, तो अपना नहीं दूसरे का टिफिन खाते
और आज तो बिन खुले टिफिन घर लौट आते हैं |
लौट जाना चाहता हूँ…..अपने उन मित्रों के पास
जो एक आवाज़ में खेल के मैदान में एकत्रित हुआ करते थे आज वह मैदान नहीं रहा…
वहाँ पर उद्योगों ने अपनी
फैमिली बना ली |
..अब कैसे लौटु उन मैदानो में..???
✒गिरेन्द्र प्रताप सिंह
© All Rights Reserved
जो सपने नहीं जिंदगी हुआ करते थे
जो ब्लैक एंड व्हाइट नहीं रंगीन हुआ करते थे |
लौट जाना चाहता हूं….. उन बचपन के मित्रों के पास
जो गरीब,अमीर नहीं सब अपने
हुआ करते थे |
हम अलग-अलग नहीं
सब एक साथ , खेला करते थे |
दिल में नफरत नहीं प्यार हुआ करता था |
लौट जाना चाहता हूं …..अपने बचपन के सपनो में
उन त्योहारों में जिनमें में पूरा परिवार एक साथ हुआ करता था |
और उन परिवारों में दो-तीन लोग नहीं
2-3 के पीछे बस जीरो लगे हुआ करते थे |
लौट जाना चाहता हूँ......अपने बचपन के सपनों में ||
लौट जाना चाहता हूं, अपने उस मोहल्ले में , जो एक साथ रहा करते थे
जो खुद में एक परिवार हुआ करते थे
यहाँ त्यौहार, त्यौहार हर रोज त्यौहार हुआ करते थे |
लौट जाना चाहता हूँ.....बचपन के सपो में
अपने उस स्कूल की छत के नीचे,जहाँ मित्रों की टांग खीचते |
कभी-कभी तो गुरू जी भी लपेटे में आते |
जब इंटरवल की घण्टी सुन सभी के टिफिन खुल जाते, तो अपना नहीं दूसरे का टिफिन खाते
और आज तो बिन खुले टिफिन घर लौट आते हैं |
लौट जाना चाहता हूँ…..अपने उन मित्रों के पास
जो एक आवाज़ में खेल के मैदान में एकत्रित हुआ करते थे आज वह मैदान नहीं रहा…
वहाँ पर उद्योगों ने अपनी
फैमिली बना ली |
..अब कैसे लौटु उन मैदानो में..???
✒गिरेन्द्र प्रताप सिंह
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