...

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न जाने क्यूँ?
मेरा दिल कर रहा मुझसे ही बगावत न जाने क्यूँ?
बेसब्र तुझे पाने को कर रहा है खिलाफत न जाने क्यूँ?

जब ख्वाबों में भी वो लिपट कर बाहों में आ जाते हैं,
क्यूँ हज़ारों हँसी मंजर निगाहों में आ जाते हैं?

क्यूँ खुशबू चमन को छोड़ मेरे सांसों में घुल जाते हैं?
क्यूँ सरसरा के अपने आप आँसू मेरे धुल जाते हैं?

मस्ती भरी घटा होगी हँसी लब जब मिलेंगे,
हाथों में हाथ लिये जब साथ हम चलेंगे।

साखों से फूल टूटकर अपने राहों में आ जाएंगे,
जब हम अपने जानम के पनाहों में आ जाएंगे।

बेसब्र नजरें कर रही है बेबसी में नज़ाकत ना जाने क्यूँ?
मेरा दिल कर रहा मुझसे ही बगावत ना जाने क्यूँ?

क्यूँ कलियों को तेरी हसीं पर नाज़ आती है?
क्यूँ मूक कण्ठ को तेरी आहट से आवाज़ आती है?

क्यूँ विरस आँखे तेरी यादों में इस कदर छलक जाते हैं?
क्यूँ मेरे सपनों के पंख पास आने को फड़क जाते हैं?


मेरा रूह कर रहा तेरे इश्क़ की इबादत ना जाने क्यूँ?
मेरा दिल कर रहा मुझसे ही बगावत ना जाने क्यूँ?




© jindagi