...

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किसान
जहां सब खत्म हो रहा था

जल रही एक छोटी सी चिंगारी थी
उसके तले बैठा बूढ़ा निढाल सा,
दूधिया चादर सी सजी ज़मीं थी
आसमां गीली गीली मुश्कानों सा.
बैठे थे सभी अपने घरों में
सूरज का भी हाल बेहाल था,
वो मूढ़ मरने को आतुर में
वहीं राह पर लेटा पसरा था.
लूट गया उसका अपना जो...