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ग़ज़ल
आँख से नींद को जुदा करके।
कुछ नहीं मिलता रतजगा करके।
मुश्किलें सारी अपनी हल होंगी,
दिल से देखो तो मशवरा करके।
दुश्मनों से गिला रहेगा नहीं ,
देख लो दोस्त आज़मा करके।
ज़्यादा सच बोलना भी ठीक नहीं,
रख न दे ये तुम्हें तन्हा करके।
सारी दुनिया हसीं लगेगी तुम्हें,
ख़ुद को देखो तो आसमां करके।
© इन्दु
कुछ नहीं मिलता रतजगा करके।
मुश्किलें सारी अपनी हल होंगी,
दिल से देखो तो मशवरा करके।
दुश्मनों से गिला रहेगा नहीं ,
देख लो दोस्त आज़मा करके।
ज़्यादा सच बोलना भी ठीक नहीं,
रख न दे ये तुम्हें तन्हा करके।
सारी दुनिया हसीं लगेगी तुम्हें,
ख़ुद को देखो तो आसमां करके।
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