...

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भिजवाएं हैं।
सुनो । तुमने कहा तो भिजवा दिया है,
बादलों से ढका एक टुकड़ा चांद ,
कुछ अनछुए भूरे बादल ,
थोड़ी सी बारिश ,
एक टुकड़ा इंद्रधनुष का ,
और एक बडंल ठंडी हवाएं।

और भिजवाएं हैं अपने मन से,
मन के मानसरोवर में खिल आए
कुछ लाल-सफेद कमल के फूल ,
इस मौसम में खिल आते हैं मेरे
घर के आसपास कुछ जंगली फूल।
कुछ सदाबहार की रंगीन किस्में ,
और बिना चांद के चांदनी बिखेरते
नर्म-नाज़ुक सफेद धतूरे के फूल।

और हां, मैंने भिजवाएं हैं कुछ बादल ,
जो कल शाम से मेरे शहर में गरज रहे थे।
कुछ बिजलियां जो रात भर दमकती रहीं ,
थोड़ी सी बारिश जो न जाने कब बरसने लगी ?
शायद रात के आखिरी या सुबह के पहले पहर ।

और देखो , भिजवा तो दिए हैं मैंने ये सब.......
पर बिन पते के।
ड़र है कि कहीं वापस न लौट आएं ।
न मालूम तुम कौन हो ?
कहां रहती हो ?
खबर भिजवा देना जो तुम तक पहुंच जाएं ।
और अगली बार के लिए पता देना ,
क्योंकि भिजवाना है तुम्हें थोड़ा सा सावन ,
हलवाई बाजार की फिरनी
और घेवर ।।


© khak_@mbalvi