ग़ज़ल
इक सफ़र है जिंदगी रुकती नहीं,
फिर भी ठहरी सी लगे चलती नहीं।
मंज़िलें हासिल हुईं हैं सब मगर,
प्यास मेरे दिल की क्यों बुझती...
फिर भी ठहरी सी लगे चलती नहीं।
मंज़िलें हासिल हुईं हैं सब मगर,
प्यास मेरे दिल की क्यों बुझती...