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ग़ज़ल
इक सफ़र है जिंदगी रुकती नहीं,
फिर भी ठहरी सी लगे चलती नहीं।
मंज़िलें हासिल हुईं हैं सब मगर,
प्यास मेरे दिल की क्यों बुझती नहीं।
रास्ता उसका अलग है औ मेरा,
आरज़ू उसकी मगर घटती नहीं।
फिर कभी मिलने का वादा था मगर,
वो घड़ी आयेगी फिर लगती नहीं।
ज़िन्दगी की राह में तुम क्या मिले,
दिल को अब सूरत कोई जंचती नहीं।
© शैलशायरी
फिर भी ठहरी सी लगे चलती नहीं।
मंज़िलें हासिल हुईं हैं सब मगर,
प्यास मेरे दिल की क्यों बुझती नहीं।
रास्ता उसका अलग है औ मेरा,
आरज़ू उसकी मगर घटती नहीं।
फिर कभी मिलने का वादा था मगर,
वो घड़ी आयेगी फिर लगती नहीं।
ज़िन्दगी की राह में तुम क्या मिले,
दिल को अब सूरत कोई जंचती नहीं।
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