...

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पत्ते
कोंपलों से निकलते वो बहार के पहले पत्ते,
टहनियों को सजाते वो नए नए कच्चे पत्ते।

पेड़ों को मुसलसल शक्ल देने वाले,
क़ुदरत के सब्ज़ रंग ये क़ीमती पत्ते।

देखते देखते ही बड़े हो जाते हैं ये,
राहगीरों पे धूप में छाँव बिखेरते पत्ते।

हवाओं में झूमते इठलाते बल खाते,
धीमी सी आवाज़ लगाते सावन के पत्ते।

कुछ टूट के उड़ जाते हैं हवाओं में,
तूफानों में टहनियों से टूटे हुए पत्ते।

जो बच जाते हैं उनका भी हश्र मुअय्यन है,
पतझड़ में पेड़ से एक एक करके झड़ जाते हैं पत्ते।

गिर के ज़मीन पर जुदा हो जाते हैं दरख़्त से,
ख़ाक में गर्त हो जाने को ये पत्ते।

मिल के ख़ाक में वापिस दरख़्त से मिल जाने की,
फिर एक नई दास्ताँ सुनाते ये पत्ते।

© Tanha Musafir