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ऐतबार हैं जब तक ख़ुद पर
ऐतबार हैं जब तक ख़ुद पर
यूं ही क्यों हम हार जाएंगे
ज़िंदगी इक दफा के लिएं
हम ज़िंदगी ना फ़िज़ूल में निसार जाएंगे
हम चाहेंगे वो पाएंगे मुसाफ़िर
ये सफ़र ना हमारे बेकार जाएंगे

ज़ख़्म भूला दें
अश्क रोक लें
जो पाने की चाहत
उसमें जान झोंक लें

दुनिया की बातों को
नजरअंदाज कर
मुस्कान रख लबों पर
दिल को खुशमिजाज कर

वक्त पे इनके हर सवाल का ज़वाब देंगे
बस अभी सब्र रखकर चलता चल
जो हैं जोश तेरे दिल में ठहरा
बस जुनून संग सीढियां चढ़ता चल

रहना अदाओं के जाल से दूर
बस ध्यान सिर्फ़ मंज़िल पर हों
ज़ेहन ओ दिल में सब्र रख
और यलगार यहां मुश्किल पर हों

जितना ख़ुद को मेहनत से जलाएंगा
फ़िर सूरज की तरहां तु चमक जाएंगा
मुकाम पर अपने पहुंचेगा जब तु
हर दिल में मिसाल बनकर महक जाएंगा

कई आलम से गुजरेगा तु
कहीं पर तो गिरेगा तु
बस तु होंसला बनाएं रखना
फ़िर हर दफा उठेगा तु

जतन चाहे लाखों करना पड़े
तपती राहों को भी मंजूर कर लेना
मेहनत के साथ सब्र रखना
ख़ुद को मंज़िल पाने को मंजबूर कर लेना

बस कुछ वक्त खुद को देदे मुसाफ़िर
बाद में पूरी दुनिया को जान लेना
फिलहाल ऐहसान कर ले खुद पर
बाद में पूरी दुनिया को ज्ञान देना

हार का दर्द बदल जोश में जाना चाहिए
फैसले राहों में होश में आना चाहिए
छोड़ो ये बैठकर बड़ी बातें करना
हुनर हैं तो मैदान में आकर दिखाना चाहिए

ख़ामोश रहकर बस अपना काम करते रहो
चाहें ज़माना कुछ भी कह रहा हों
अपनी मंज़िल की तरफ़ भागों मोह-माया छोड़कर
चाहें दिलकश नज़ारा कितना भी लालच दे रहा हों

मुंतशिर होकर मत बैठो रूठें रूठें
मसरूफ़ हो जाओ मंज़िल की राहों में
अगर चलते रहो लगातार ओ मुसाफ़िर
तो मंज़िल ख़ुद आएंगी तेरी बाहों में

जलन की रिहाईश हम दुनिया के दिल में करेंगे
जुनून इतना हैं,कि मंज़िल हासिल हर मुश्किल में करेंगे
-उत्सव कुलदीप















© utsav kuldeep