...

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प्यार नशा है..
ये प्यार नशा है, मदहोशी है।
ज़रा होश है, ज़रा बेहोशी है।।

इक दीवानगी है, आवारगी है।
इस दिल की यही, बेचारगी है।।

इक साजिश है जो, सोची समझी।
पता है फिर भी, शिकार हैं हम भी।।

इस दर्द का, दोषी दिल यही है।
प्यार को, बस फ़क़त हासिल यही है।।

इस झूठ की, आरज़ू सच्ची है।
सपनों के महल की, दीवार कच्ची है।।

जिस ख्वाब को, आँख ये सँजोती है।
टूट जाने पे, बहुत रोती है।।

रंग चमकीला, चुँधिया जाओ।।
जो न देखो, तो ठोकर खा जाओ।।

पर उतरता है जब, नशा प्यार का---

मदहोशी, बेहोश बना देती है।
मौत की, आग़ोश सदा देती है।।

दीवानगी, आवारा बना देती है।
ज़िंदगी से, ये हारा बना देती है।।

खुद से वो साजिश, सज़ा बन जाती है।
खुदा की यही, रज़ा बन जाती है।।

दर्द मीठा, बेदर्द बन जाता है।
हौंसला प्यार का, सर्द बन जाता है।।

प्यार झूठा, ज़हर बन जाता है।
तब जीना भी, कहर बन जाता है।।

छलावा ज़िन्दगी को, छल जाता है।
जब साथी, दूर निकल जाता है।।

रंग चमकीला दाग, बन जाता है।
जो बुझ न सके, आग बन जाता है।।
© Nits