...

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धागा....
ज़िंदगी की इस भागंभाग में(भाग -दौड़)
एक वक्त ऐसा भी आता है...
जब हमारे अंदर का विश्वास नामक धागा,
हमसे ऐसे टूट जाता है...

मानों आकाश में उड़ती हुई किसी पतंग का धागा टूट गई हो...
और वो पतंग नीचे आ गिरी हो....

वो धागा ऐसे टूट जाता है कि..
उसे दोबारा उस पतंग पर...