...

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◆ महाशिरात्रि ◆
आप मेरे हृदय के गर्भगृह में विराजते हो ऐसे
जैसे विराजे काशी में विश्वनाथ ,,

मेरे हृदय की प्रलयों को अपने अंदर विलीन कर लेते हो ऐसे ,
पृथ्वी माँ की सुरक्षा करते हो जैसे ,,

मैं तुम्हें पुकारता हूँ शशिशेखर , या पुकारता हूँ उमापति महादेव ,,

मैं पुकारूँ तुम्हें कामरि
मैं पुकारूँ तुम्हें अम्बिका नाथ
मैं पुकारूँ तुम्हें कपाली
मैं पुकारूँ तुम्हें औघड़
मैं पुकारूँ तुम्हे गंगाधर
मैं पुकारूँ तुम्हे जटाधर
मैं पुकारूँ तुम्हें कृपानिधि
मि पुकारूँ तुम्हें कैलाशी
मैं पुकारूँ तुम्हें भैरव
मैं पुकारूँ तुम्हें कालभैरव
मैं पुकारूँ तुम्हें भूतनाथ
मैं पुकारूँ तुन्हें शम्भू
मैं पुकारूँ तुम्हें लीलाधर
मैं पुकारूँ तुम्हें भस्मोद्धूलित

इतने हैं नाम तेरे क्या क्या पुकारूँ तुम्हे ,
तू भोला है , तू भंडारी
तू ॐ है तू ही है ॐकारा

तू विष्णू का इष्ट है , तू ब्रह्मा का नाथ है
तुम काल का नाद हो ,
तुम मेरे महाकाल हो

हाँ ! तुम मेरे महाकाल हो
तुम मेरे पशुपतिनाथ
तुम मेरे ही पाशविमोचन , महादेव हो !

तू मेरा ही रुद्र है , तू मेरा ही व्योमकेश है
तू मेरा ही सदाशिव
तू मेरा ही अर्धनारीश्वर है !

हाँ ! तू मेरा ही अर्धनारीश्वर है !!

एकटक निहारूँ तुझे ,
अनंत भी न ज्ञात हों ,

गौरा साथ देखूँ तुझे , हर क्षण की जैसे बात हो
मेरे इस हृदय में जैसे , बस शिवशक्ति का वास हो !!

© निग्रह अहम् (मुक्तक )