...

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मनमोहनी सुरतिया
मनमोहनी सुरतिया तेरी मेरा मन लिए जाएं,
हाय!श्याम तुम बिन अब तो रहा ना जाए।।
मैं राह की कंकर पत्थर ,तू शीप का है मोती"
कैसें मिल पाऊं तुम से मैं जोगी.......??
मैं पतझड़ की सुखी पत्ती ,तू वसंत का सवेरा"
कैसे हो मिलन प्रभू जी तेरा और मेरा....??
मैं यमुना की मीन हूं स्वामी, तुम हो मेरा किनारा"
हे नाथ तुम बिन कैसा ये जीवन मेरा ..??
मेरे कंठ कर्कस कौए का, तुम प्राण हो वीणा की,
तुझ बिन कैसा स्वर, कैसे हो संगीत का सवेरा..??
मैं कांटों की जात हूं,तूम उपवन के फूल हो प्यारा"
कैसे तुझ संग रह पाऊं मैं ,कैसे हो संग अपना बसेरा..?
मैं मती हीन कुलीन जाति का,तुम हो कुल श्रेष्ठ धरा का ,
कैसे तुम्हारा स्पर्श करूं..?ऐसा कहां भाग्य हमारा??
मैं अदनी तुम इष्ट हो मेरे, तुम बिन नहीं मेरा कोई और सहारा।
किस विधि तुम तक पहुंच मैं पाऊं,दूजा नहीं कोई राह प्रेम और भक्ति सा।।
किरण