' ढलती शाम '
ले रहा जमहाई डूबता सूरज,
मिटाने को दिन-भर की थकान,
चंदा की डोली, तारों की बोली,
संग आई देखो ढलती शाम!
सो चला जग छांव में तारों की,
चांदनी की देखो चादर तान,
कल उगेगा सूरज फिर नई उर्जा लेकर,
कराने को संग अपने सबसे काम!
फिर चहकेंगी चिड़ियाँ, कूकेंगी कोयल,
और होगी मस्जिदों में अज़ान,
चमकेंगी बूंदें शबनम की मोती जैसी,
और गूंजेगा हर मंदिर में राम का नाम!
स्वर्णिम आभा फैलेगी सूरज की,
और होगा हर कोने पर उसका ध्यान,
कर विदा तिमिर को कुम्हलाएगा सूरज,
और निशाचर करेंगे सब आराम!
होगी चहल-पहल वहाँ और मचेगा शोर,
जो पडी घंटों से गलियाँ सुनसान,
नर-नारी, बच्चे....हो या पंछी,
सब दिखेंगे व्यस्त... पूरे करने में अपने काम!
© Shalini Mathur
मिटाने को दिन-भर की थकान,
चंदा की डोली, तारों की बोली,
संग आई देखो ढलती शाम!
सो चला जग छांव में तारों की,
चांदनी की देखो चादर तान,
कल उगेगा सूरज फिर नई उर्जा लेकर,
कराने को संग अपने सबसे काम!
फिर चहकेंगी चिड़ियाँ, कूकेंगी कोयल,
और होगी मस्जिदों में अज़ान,
चमकेंगी बूंदें शबनम की मोती जैसी,
और गूंजेगा हर मंदिर में राम का नाम!
स्वर्णिम आभा फैलेगी सूरज की,
और होगा हर कोने पर उसका ध्यान,
कर विदा तिमिर को कुम्हलाएगा सूरज,
और निशाचर करेंगे सब आराम!
होगी चहल-पहल वहाँ और मचेगा शोर,
जो पडी घंटों से गलियाँ सुनसान,
नर-नारी, बच्चे....हो या पंछी,
सब दिखेंगे व्यस्त... पूरे करने में अपने काम!
© Shalini Mathur