...

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अनदेखी डोर
वो धागा जो कभी नज़र नहीं आता,
फिर भी हर दिल से दिल को जोड़ जाता।

फ़ासले कितने भी हों, क्या होता है,
वो पास खींच कर दिलों को ला देता है।

रिश्तों में ऐसी ख़ुशबू बसी रहती,
जैसे चुपचाप सब कुछ सँवार जाता है।

दूरी में भी हम क़रीब होते हैं,
जब दिलों का तार झनझना जाता है।

ये अनदेखा बंधन अजीब होता है,
बिन कहे सब एहसास जगा जाता है।

जो नज़र में कभी नहीं आता,
वो धागा हर वक़्त साथ निभाता है।


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