...

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चौक का मकान
आज मुद्दतों बाद चौक का वो मकान देखा,
उन सफ़ेद सुतूनों को आज भी जवान देखा.

वक्त लेता है दुनिया में बने रहने का तावान,
उसी के पड़ोस को वक्त से लहू-लुहान देखा.

खड़ी हैं दीवारें अब भी अंगड़ाइयां लेते हुए,
जिस्म पे वक्त के इम्तिहानों का निशान देखा.

बे-नुमायां एहसास हैं उसकी बुनियाद के पत्थर,
नींव के बयान में मैंने एक क़िस्सा-ख्वान देखा.

'ज़र्फ़' न है वो घर बस मंज़िल ईंट गारे की,
उस घर के चेहरे में मैंने एक पूरा इंसान देखा.
© अंकित प्रियदर्शी 'ज़र्फ़'

अर्ज़ किया है......
मुद्दतों- बहुत वक्त बाद (after a long time)
सुतूनों - खंबे (pillars)
तावान- हर्जाना (fine, taxation)
बे-नुमायां- बिना दिखे (without coming to the front)
क़िस्सा-ख्वान - कहानी सुनाने वाला (story teller)
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