चौक का मकान
आज मुद्दतों बाद चौक का वो मकान देखा,
उन सफ़ेद सुतूनों को आज भी जवान देखा.
वक्त लेता है दुनिया में बने रहने का तावान,
उसी के पड़ोस को वक्त से लहू-लुहान देखा.
खड़ी हैं दीवारें अब भी अंगड़ाइयां लेते हुए,
जिस्म पे वक्त के इम्तिहानों का निशान देखा.
बे-नुमायां...
उन सफ़ेद सुतूनों को आज भी जवान देखा.
वक्त लेता है दुनिया में बने रहने का तावान,
उसी के पड़ोस को वक्त से लहू-लुहान देखा.
खड़ी हैं दीवारें अब भी अंगड़ाइयां लेते हुए,
जिस्म पे वक्त के इम्तिहानों का निशान देखा.
बे-नुमायां...