...

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दर्द का दरिया...
दर्द का दरिया भर ना जाए कहीं
तू मेरे दिल से उतर ना जाए कहीं

मुद्दतों से देखा नहीं तुझको मैंने
बिन देखे तुझे हम गुज़र ना जाए कहीं

तेरे कदमों को वापस मोड़ने से होगा क्या
तेरा सफर बीच राह में मर ना जाए कहीं

उसने मुकर्रर कर दिया हैं दिन मेरी मौत का
हमको डर है पहले वो मर ना जाए कहीं

चलो अब घर चले अपने, इस मयखाने से
ये कदम फिर से संभल ना जाए कहीं

चिरागो अपनी रोशनी ज़रा कम कर दो
शम्मा पे उड़ता परवाना जल ना जाए कहीं

ज़िन्दगी तेरे तआक़ुब में हम इतना चले हैं
की अपनी हद से गुज़र ना जाए कहीं

निगाहों से रिहा होने दो इन अश्कों को
आँखों का समंदर भर ना जाए कहीं

ए ख़ुदा मुझे थोड़ी सी ज़िन्दगी ओर बख्श
मंज़िल से पहले ये सफर ठहर ना जाए कहीं

© विकास शर्मा