...

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मन की बात
खुशनुमा दिन की शुरुआत थी,
सुबह- सुबह की बात थी।
आज उससे मिलना था,
तैयार हुआ,
क्योंकि बेहतर दिखना था।
पहुंचा निश्चित समय और स्थान पर,
मुँह पर था मास्क और हाथ सैनिटाइज कर।
मेरे मुख की प्रसन्नता को,
मेरी आंखे झलका रही थी।
उस लाल परिधान में,
वह क्या गजब कहर बरपा रही थी।
मानो दे रही हो,
किसी अनचाही घटना का संदेश।
सामाजिक दूरी से लैस था,
रेस्टोरेंट का परिवेश।
सुरक्षा के मापदंड देख,
खुद को सुरक्षित महसूस करने लगा।
मास्क को मुख से हटा,
गले की ओर लाने लगा।
कर्मचारी के मास्क हटाते वक्त टोकने को,
मैंने अनदेखा किया,
बस दो मिनट की बात पर,
यहीं गलती कर बैठा,
इस छोटी सी मुलाकात पर।
मास्क के हटते ही,
जगह का बदला रूप।
घनघोर काले कक्ष में,
मेरे समक्ष कोरोना का स्वरूप।
उस भयावह दृश्य को देख,
मैं चिल्लाया, ज्योत्सना!!!
और टूट गया मेरा सपना।
खुश किस्मत हूँ,
कि यह सिर्फ एक सपना था।
पर इसका प्रभाव मुझ पर,
वास्तविक जितना था।
हमारी सुरक्षा - हमारे हाथ।
चिकित्सकों पर आप रखें विश्वास।
बंधुओं मास्क न लगाकर,
हम खुद अपनी सुरक्षा में सेंध लगवाएंगे।
इसे लगाकर ही हम,
खुद भी बचेंगे और दुसरों को भी बचा पाएंगे।
सलाम उन सभी कोरोना योद्धाओं को,
जो लड़े हैं निर्भीकता से,
महामारी हारेगी,
हमारी सकारात्मक सोच की एकता से।

© Rohit Sharma(Joker)

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