ग़ज़ल
जब इरादा था दूर जाने का
क्यों किया वादा पास आने का
ज़ीस्त है गर सराब जैसी तो
फ़ायदा क्या था आज़माने का
वक़्त-ए-आख़िर हुआ मुझे एहसास
ज़िंदगी नाम है गँवाने का
ग़म खरीदा है मुफ़्त...
क्यों किया वादा पास आने का
ज़ीस्त है गर सराब जैसी तो
फ़ायदा क्या था आज़माने का
वक़्त-ए-आख़िर हुआ मुझे एहसास
ज़िंदगी नाम है गँवाने का
ग़म खरीदा है मुफ़्त...