...

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सरहद
वो भीगे नयन, वो मुरझाता बचपन,
यादों में पलपल, मायूस कोई आँगन,

कहीं ममता महरूम, कहीं पिता तरसते,
सरहद यादों की, अश्कों में रिसते,

कहीं कोई कुमकुम अधूरी तो श्रृंगार अधूरा,
उसकी एक कमी से पूरा घरबार अधूरा,

सुहाग की निशानी लाल रंग कहीं डर का प्रतीक,
गर्व जितना ही सरहदी पैबंद पर, पीड़ा भी अधिक,

कर्कश अब पटाखों की आवाज़ें, गोला बारूद जैसी,
ना उतरे निवाला यहाँ, किसी की ज़िंदगी वहाँ फंसी,

फ़िर भी है इन सरहद की यादों को, है बलिदान कुबूल,
दी जितनों ने भी कुर्बानी, मत उन्हें कभी भूल।
© khwab