...

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Ghazal

जो चाहता था आपने, जनाब दे दिया
इन कांपते लबों ने , जवाब दे दिया

खामोशियों से कब छुपा है ये कमबख्त इश्क़
कहा ना एक लफ्ज़ और हिसाब दे दिया

मालूम था हमें ही पहल करनी पड़ेगी
यही सोचकर बस आपको गुलाब दे दिया

आँखों के तीर दिल को मेरे कर गये छलनी
क़ातिल का हमने आपको ख़िताब दे दिया

मेरी बिसात कुछ नहीं, मालिक का करम था
हुजरे में उसने मेरे महताब दे दिया

खुदा ये जानता था मुझे मय की लत नहीं
"गुलशन" को जीता जागता शराब दे दिया

© GULSHANPALCHAMBA