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परनिंदा सम सुख अन्यत्र नाहिं(व्यंग्य-लेख)
परनिंदा-सम सुख अन्यत्र नाहिं

(व्यंग्य-लेख)

इस दुनिया में सुखों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। हर व्यक्ति के लिए सुख की परिभाषा अलग है और सुखी होने का पैमाना विभिन्न है लेकिन तमाम सुखों में एक ऐसा सुख भी है जो मानव जाति में बहुतया पाया जाता है और वह सुख है- परनिंदा सुख । निंदा करने में जो सुख है वह सारे सुखों को एक तरफ़ कर अपनी गहरी पैठ बना लेता है। यदि परनिंदा करने वाले जीवों की बात करें तो ये सर्वत्र विद्यमान हैं। दुनिया का शायद ही कोई कोना ऐसा हो जो इनकी कृपा से अछूता रहा हो। ये जीव देखने में बिल्कुल मनुष्य की ही भाँति दिखाई देते हैं। इन जीवों की एक खास विशेषता यह है कि ये चेहरे का रंग व हाव-भाव बदलने में बहुत ही कुशल होते हैं। ये कब कौनसा रूप रंग बदल लें, यह कहना मुश्किल है। ये जीव हमारे अपने घर वाले, रिश्तेदार, पड़ोसी अथवा सहकर्मी होते हैं। इनकी पहचान तो मुश्किल होती है लेकिन इनसे...