...

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सुकून..
पग पग संग चल चल, आज कई बरसो से दो एक हो चुके है
कहने को तो है हितैशी, हितकारण बद्ध लाखकोस चल चुके है
कभी नादियों के किनारे, कभी घोड दौड़ गुब्बारे, पतंग के ओर
कभी मौन आहट से चोर सिपाई, कभी सका संग मचाते शोर

कभी घर की छत छोड़, कभी मैदानों में,खेल खेलते हुए दौड़
कभी किताबों से मुख मोड़, कभी कूद छलांग से मचाकर तोड़
कभी महानो के स्वप्र...