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सुनो प्रिये !
मैं जीवन के अवसाद पथों का राही ,
तुम शीतल मन्द बयार प्रिय।
तुम उगते सूर्य की अरूणाई आभा,
मैं अस्ताचल का सूर्य प्रिये।
तुम तरूण दीप्त दिए की लौ हो,
मैं ढलती सांझ और रात प्रिये।
तुम नवकुसुमित हरसिंगार का पुष्प,
मैं पराग सूघंता बौराया सा भ्रमर प्रिये।
तुम सुधा बिखेरती धवल चांदनी,
मैं चन्द्र को लगा क्षयरोग प्रिये।
तुम अभिमानी हिमानी सी हिमशिखरों पर सजती हो ,
मैं उन शिखरों के धरातल पर बहने वाली धार प्रिये।
तुम आंखों में बसने वाला स्वप्न सम्मोहन,
मैं आंखों से बहते काजल की धार प्रिये।
तुम अलसाए यौवन की मादक अंगड़ाई सी,
मैं थके यौवन का चढ़ता- गिरता श्वास प्रिये।
तुम प्रथम प्रणय के प्रथम उन्माद का सित्कार,
मैं विदीर्ण हृदय के उच्छवास की आह प्रिये।
मैं सावन ॠतु की अमावस्या काली,
तुम शरद ॠतु का चांद प्रिये।।
© khak_@mbalvi
तुम शीतल मन्द बयार प्रिय।
तुम उगते सूर्य की अरूणाई आभा,
मैं अस्ताचल का सूर्य प्रिये।
तुम तरूण दीप्त दिए की लौ हो,
मैं ढलती सांझ और रात प्रिये।
तुम नवकुसुमित हरसिंगार का पुष्प,
मैं पराग सूघंता बौराया सा भ्रमर प्रिये।
तुम सुधा बिखेरती धवल चांदनी,
मैं चन्द्र को लगा क्षयरोग प्रिये।
तुम अभिमानी हिमानी सी हिमशिखरों पर सजती हो ,
मैं उन शिखरों के धरातल पर बहने वाली धार प्रिये।
तुम आंखों में बसने वाला स्वप्न सम्मोहन,
मैं आंखों से बहते काजल की धार प्रिये।
तुम अलसाए यौवन की मादक अंगड़ाई सी,
मैं थके यौवन का चढ़ता- गिरता श्वास प्रिये।
तुम प्रथम प्रणय के प्रथम उन्माद का सित्कार,
मैं विदीर्ण हृदय के उच्छवास की आह प्रिये।
मैं सावन ॠतु की अमावस्या काली,
तुम शरद ॠतु का चांद प्रिये।।
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