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वह मेरी दूसरी माँ
वह मेरी दूसरी माँ बनती गयीं

मेरा जन्म उनके सात साल बाद हुआ
पीठ पूजाई के समय
पिता ने सबसे कहा बहुत 'लक्ष्मिनिया' है मेरी बेटी
अपनी पीठ पर बेटा ले आयी
लेकिन सारा लाड़-प्यार जब मुझपर ढड़कने लगा
एक दिन वह रूष्ट होकर माँ से मातृभाषा में बोलीं
--'बहुत बनऽतारी बेटा भइल बा तऽ'

जब मैं वय:संधि में आया उनका विवाह हो चुका था
एकबार जब वह मैके आयीं तो पता नहीं उन्होंने मुझमें ऐसा क्या देखा कि उदास हो गयीं
बाबूजी और माँ से कहा यह बिगड़ रहा है
मैं इसे अपने साथ रखूँगी और वह मुझे ले उड़ीं जैसे एक चिड़िया अपने नवजात बच्चे के साथ परवाज करती है आकाश की अनंतता में

यह शुरुआत थी एक खुशनुमा मौसम की
वीणा के तारों ने पहलीबार मेरा साथ देना शुरू किया
यह एक अलग दुनिया थी संभावनाओं की अनेक खिड़कियों से भरी

इसतरह वह मेरी दूसरी माँ बनती गयीं
जिन्होंने एक मिट्टी के लोंदे को उठाकर एक मूर्ति की तरह तराशा और गढ़ा

ओ दिवंगत माँ पिता !
ओ ब्रह्माण्ड के अनंत नक्षत्रो !
सूरज चाँद तारों आकाशगंगाओ !
धरती आकाश पाताल
ब्रह्मा विष्णु महेश
ओ सहस्र कोटि देवताओ !
देखना उन्हें कोई असुविधा न हो
बहुत आरामतलब जिंदगी रही थी उनकी
उनका ख्याल रखना हो सके तो उन्हें अपने पास हीं रखना

(बड़ी बहन,पुण्यतिथि-17-05-21)
© daya shankar Sharan