महाक्लेश
धधक रही हैं कण कण माटी, भभक रही असंख्य ज्वाला,
न जाने कहां छिप कर बैठा? वो मानवता का रखवाला।
क्यों तुम्हे दया नही आती? क्यों तुम अवतार नही लेते?
ऐसी दुर्दशा देख कर भी, क्यों कोई चमत्कार नही करते?
मझधार फंसी नइया डुबती, क्यूँ देते नही सहारा?
न जाने कहां छिप कर बैठा? वो मानवता का रखवाला।
क्यों अंश तुम्हारे बिलख रहे? पर तुम हो खोए-खोए,
किन ख्वाबों...
न जाने कहां छिप कर बैठा? वो मानवता का रखवाला।
क्यों तुम्हे दया नही आती? क्यों तुम अवतार नही लेते?
ऐसी दुर्दशा देख कर भी, क्यों कोई चमत्कार नही करते?
मझधार फंसी नइया डुबती, क्यूँ देते नही सहारा?
न जाने कहां छिप कर बैठा? वो मानवता का रखवाला।
क्यों अंश तुम्हारे बिलख रहे? पर तुम हो खोए-खोए,
किन ख्वाबों...